खुद का हॉस्पिटल बिज़नेस कैसे शुरू करें? : जीने के लिए जो जरूरी चीजें हैं, उनकी अहमियत हमेशा बनी रहती है जैसे कि खाना, पढ़ाई, मेडिकल फैसिलिटी वगैरह। इसलिए कोरोना के दौरान भी जब स्ट्रिक्ट लॉकडाउन लगा हुआ था तब ग्रोसरी, सब्जी की दुकान, डेरी सेंटर्स, फूड डिलिवरी जैसी चीजें खुली थी। स्कूल कॉलेज बंद थे, पर ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी और लोगों के इलाज के लिए मेडिकल सर्विसेस चौबीसों घंटे चालू थी।
डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ काम कर रहे थे। हॉस्पिटल और मेडिकल स्टोर्स खुले थे। अमीर हो या गरीब, हर किसी को बीमारी से बचने के लिए इलाज के लिए हॉस्पिटल तो जाना ही पड़ता है। बढ़ती डिमांड और एडवांस होती मेडिकल ट्रीटमेंट के चलते लोगों तक सारी सुविधाएं पहुंचाने के लिए अब ज्यादा से ज्यादा हॉस्पिटल्स और नर्सिंग होम्स खुल रहे हैं। इनमें गवर्नमेंट और प्राइवेट दोनों ही होते हैं और आज हम आपको बताएंगे कि प्राइवेट हॉस्पिटल कैसे खोला जाता है।
लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन।
एक हॉस्पिटल स्टैब्लिश करने के लिए लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन चाहिए जोकि निचे पॉइंट्स में दिया गया है।
- वह है रजिस्ट्रेशन अंडर द क्लाइमेट इस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2007। यह सेंट्रल गवर्मेंट का बनाया हुआ है, जिसे देश के सभी राज्यों ने अपनाया हुआ है। एक वनटाइम रजिस्ट्रेशन है जो हॉस्पिटल चलाने के लिए जरूरी है और जिस भी राज्य में हॉस्पिटल खोला जा रहा है, वहां की स्टेट गवर्नमेंट से यह रजिस्ट्रेशन लेनी पड़ती है। हॉस्पिटल जिस भी कैटिगरी में रजिस्टर होगा, उसकी सभी जरूरतें पूरी करनी होती है।
- दूसरा है रजिस्ट्रेशन अंडर कंपनीज एक्ट 2013। इसकी जरूरत पड़ती है जब कोई कंपनी या कॉरपोरेशन हॉस्पिटल बनाना चाहे। कॉरपोरेट हाउस को तो मेमोरेंडम ऑफ असोसिएशन, आर्टिकल्स ऑफ असोसिएशन, कैपिटल स्ट्रक्चर परमिशन, सिक्योरिटीज अलॉटमेंट एंड अकाउंट ऑडिट जैसी चीजों के लिए कंपनीज एक्ट का रजिस्ट्रेशन जरूरी होता है।
- अब अगर डायरेक्टर इंडेक्स नंबर की बात करें तो हॉस्पिटल या नर्सिंग होम को चलाने के लिए जितने डायरेक्टर अपॉइंट किए जाएंगे, उनका अपना डीआईएन यानी डायरेक्टर इंडेक्स नंबर चाहिए होता है, जिसे मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स गवर्मेंट ऑफ इंडिया से लेना होता है। डीआईएन लेना मैंडेटरी होता है, अनिवार्य होता है और यह सिर्फ वन टाइम होता है।
- इसी के साथ आगे रजिस्ट्रेशन सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 2001 की बात करें तो अगर हॉस्पिटल या मेडिकल इंस्टीट्यूट को किसी सोसाइटी के ओनरशिप में खोला जा रहा है, तब सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 2001 के अंडर रजिस्ट्रेशन लेना पड़ता है।
- अगला है एफ एस एस आई लाइसेंस और ऑपरेटिंग किचन। यानी कि आमतौर पर लगभग सभी हॉस्पिटल और नर्सिंग होम्स में किचन या कैंटीन की सुविधा रहती है ताकि इलाज के दौरान पेशेंट्स को खाना दिया जा सके। इसके लिए फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया से परमीशन लेनी पड़ती है।
- फार्मेसी रजिस्ट्रेशन। कई बार हॉस्पिटल्स में ही आपको मेडिकल स्टोर्स दिख जाते हैं। इसके लिए फार्मेसी रजिस्ट्रेशन लगती है या फिर किसी थर्ड पार्टी वेंडर, जिसके पास फार्मेसी का लाइसेंस होता है, उनको हॉस्पिटल मैनेजमेंट अपने प्रमाण में दवा की दुकान खोलने की परमिशन दे देता है।
- इनके अलावा भी सर्टिफिकेट ऑफ रजिस्ट्रेशन ऑफ हॉस्पिटल, म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन, इंडियन म्यूनिसिपल काउंसिल, एक्ट टू थाउजेंड टू में रजिस्ट्रेशन, ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन, एम्बुलेंस रजिस्ट्रेशन,
- हॉस्पिटल की सिक्योरिटी के लिए लाइसेंसिंग ऑफ आर्म्स, अंडर द आर्म्स एक्ट, फिफ्टीन आई रजिस्ट्रेशन, ट्रांसपोर्टेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट फोर में भी रजिस्टर करवाना पड़ता है।
हॉस्पिटल की लोकेशन।
किसी भी हॉस्पिटल की लोकेशन ऐसी होनी चाहिए जहां से वह पब्लिक की पहुंच में हो या फिर किसी ऐसे टाउन या शहर में हो जहां से आसपास के एरिया के लिए भी वह ज्यादा दूर न हो। आबादी अच्छी हो, ट्रांसपोर्ट फैसिलिटी, रोड और रेल कनेक्टिविटी सही हो। साथ ही लोगों की फाइनेंशियल कंडीशन भी बेहतर हो, क्योंकि प्राइवेट हॉस्पिटल्स या नर्सिंग होम्स के बेस थोड़ी ज्यादा होती है। अगर हॉस्पिटल के लिए जमीन ली जा रही है, तो यह देखना भी जरूरी होता है कि वह एग्रीकल्चर की जमीन है या नहीं। वहां इलेक्ट्रिसिटी, वॉटर सप्लाई अच्छी हो। साथ ही हॉस्पिटल के पास अच्छी पार्किंग फैसिलिटी भी होनी चाहिए।
फैसिलिटीज एंड सर्विसेज की।
किसी भी हॉस्पिटल में जब कोई अपना इलाज करवाने जाता है तो सबसे पहले यह देखता है कि वहां डॉक्टर्स, स्पेशलिस्ट, मेडिकल फैसिलिटी क्या क्या है और उनका ट्रैक रिकॉर्ड कैसा है। मतलब वहां लोगों का इलाज कैसा है, हॉस्पिटल का इलाज कितना भरोसेमंद है । उसी हिसाब से लोग वहां पर पहुंचते हैं। इसलिए कोई नया हॉस्पिटल खोलते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आप लोगों को कितनी बेहतर सर्विस देने की कमिटमेंट कर रहे हैं। उसी हिसाब से आपको डॉक्टर्स, मेडिकल स्टाफ, नर्सिंग स्टाफ, ओपीडी, ईएनटी, जनरल वार्ड, मशीन, ऑपरेशन फैसिलिटी, एक्स रे, एमआरआई, पैथोलॉजी सेंटर, टेस्टिंग सेंटर्स वगैरह रखने पड़ेंगे।
अगर कोई स्पेशलिटी के साथ आगे बढ़ रहे हैं जैसे ऑन्कोलॉजी सेंटर तो आपके पास वो सारी सुविधा होनी चाहिए ताकि पेशेंट्स को कहीं और न जाना पड़े। इसके अलावा भी लिफ्ट, एसी रूम्स, वॉटर इलेक्ट्रिसिटी, पावर बैकअप, एम्बुलेंस, मेडिकल स्टोर, ब्लड बैंक जैसी चीजें एक हॉस्पिटल के स्टैंडर्ड को हाई रखती हैं और इनके साथ ही साफ सफाई भी बहुत जरूरी है। हॉस्पिटल मैनेजमेंट को। यह भी ध्यान देना होता है कि डॉक्टर और स्टाफ मरीजों से अच्छा बर्ताव करें।
इससे रेपुटेशन अच्छी बनती है तो इस तरीके से हॉस्पिटल बनाने के साथ साथ उसकी मेंटेनेंस भी उतनी ही जरूरी है ताकि कोई भी दिक्कत ना हो। क्योंकि अक्सर सरकारी हॉस्पिटल की खराब सर्विस के चलते ही लोग प्राइवेट सर्विस लेने पहुंचते हैं। इसलिए लिफ्ट सही से चलती रहे, एंबुलेंस की कमी ना पड़े, ब्लड की शॉर्टेज ना पड़े, मेडिकल इक्विपमेंट सही से काम करे, दवाइयां मौजूद रहे, पावर कट ना हो। ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी ना हो। हर डिपार्टमेंट में डॉक्टर्स मौजूद रहें। सिक्यॉरिटी अच्छी हो और ऐसी ढेर सारी चीजें की प्रैक्टिस होती है।
बायोमेडिकल वेस्ट।
मेंटेनेंस के बाद में बात करते हैं बायोमेडिकल वेस्ट की। इलाज के बाद निकले मेडिकल कचरे को बायोमेडिकल वेस्ट कहा जाता है। इनको सही से डिस्पोज करने के लिए आपके पास अच्छी सुविधा होनी चाहिए। इन्हें सेफली शहर से बाहर ले जाने के लिए या कचरा डंपिंग यार्ड तक पहुंचाने के लिए गाड़ी होनी चाहिए या फिर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के साथ आपका टाईअप हो, ताकि नगर निगम की गाड़ी आए और उन्हें हर रोज ले जाए। क्योंकि बायोमेडिकल वेस्ट से इन्फेक्शन और बीमारियां फैलने का रिस्क बहुत ज्यादा होता है।
डिजिटल पेमेंट फैसिलिटी और कैशलेस की सुविधा।
आजकल हर कहीं डिजिटल पेमेंट एक्सेप्ट होता है। इसलिए हॉस्पिटल्स में गूगल पे, पेटीएम या डेबिट क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने की सुविधा होनी चाहिए। क्योंकि लोग इतना सारा कैश लेकर जेब में तो घूमेंगे नहीं। इसके साथ ही अगर आपका हॉस्पिटल कैशलेस फैसिलिटी दे रहा है तो ज्यादा लोग इलाज करवाने पहुंचेंगे। क्योंकि जॉब करने वाले लोगों को उनकी कंपनी मेडिकल इंश्योरेंस देती है और साथ ही लोग पर्सनल मेडिकल इंश्योरेंस भी रखते हैं। इसलिए खुद को कैशलेस फैसिलिटी सर्विस प्रोवाइडर की तरह रजिस्टर करवा लीजिए या मेडिकल इंश्योरेंस देने वाली कंपनी से टाईअप करवा लेना चाहिए।
फायर सेफ्टी की एनओसी।
आग लगने जैसे अपॉच्र्युनिटी इंसीडेंट कहीं भी हो सकते हैं। अक्सर ऐसी चीजें वहां पर होती हैं, जहां पर इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट ज्यादा होते हैं और शॉर्ट सर्किट हो जाए तो आग लग जाती है। इसलिए बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन करवाते समय ही उसमें आग बुझाने वाला सिस्टम लगवा लेना चाहिए। अगर आप खर्चा कम करवाने की सोच करके ऐसा नहीं करवाते हैं तो बाद में हो सकता है कि आप पर गवर्नमेंट की तरफ से जुर्माना लगाया जाए या फिर कोई अपॉच्र्युनिटी इंसीडेंट हो जाए तो हॉस्पिटल की इमेज खराब होगी और हो सकता है कि आपका हॉस्पिटल सील कर दिया जाए।
साथ ही बिल्डिंग में जगह जगह फायर एक्सटिंग्विशर होना चाहिए ताकि आग पर काबू पाया जा सके। इसके अलावा हॉस्पिटल की बनावट ऐसी होनी चाहिए ताकि किसी भी एमरजेंसी सिचुएशन जैसे कि आग लगने, बाढ़ आने या भूकंप होने पर अफरा तफरी मची और लोगों को आसानी से रेस्क्यू किया जा सके। इन सारी बातों के साथ हम और कुछ छोटी छोटी बातों पर ध्यान दें तो साइन बोर्ड बहुत ही इम्पॉर्टेंट है। जब भी कोई मरीज या उसके रिलेटिव हॉस्पिटल में पहुंचते हैं तो उनको हॉस्पिटल में आने जाने के लिए कोई दिक्कत ना हो।
लोग कन्फ्यूज न हो इसके लिए जगह जगह सही से साइन बोर्ड लगे होने चाहिए ताकि किसी से बिना पूछे भी लोग हॉस्पिटल में जरूरी जगह पर आ जा सके। साथ ही एमरजेंसी नंबर्स, नो स्मोकिंग, साइलेंस, प्लीज, साइलेंट यू, मोबाइल कीप, शूज, आउट, ओपीडी, पार्किंग, लिफ्ट की डायरेक्शन, पैथोलॉजी लैब जैसे जितने भी डिपार्टमेंट होते हैं और पीएमआई से होते हैं, उनकी सही डायरेक्शन होनी चाहिए।
हॉस्पिटल के एक्सपेंशन प्लान।
जब भी हॉस्पिटल बनाने की प्लानिंग होती है तब उसके एक प्लान पर भी काम किया जाता है। जैसे की अगर फ्यूचर कोई नया डिपार्टमेंट खोलना हो, नई बिल्डिंग बनानी हो, पार्किंग फैसिलिटी बढ़ानी हो वगैरह वगैरह। तो इन सबके लिए हॉस्पिटल के पास ही एक्स्ट्रा जमीन खाली छोड़ दी जाती है या बिल्डिंग की नीव रखी जाती है ताकि ऊपर फ्लोर बढ़ाई जा सके। जमीन खरीदते समय ही ये सारी बातें ध्यान में रखने वाली होती है।
लास्ट में ब्रांडिंग एंड एडवरटीजमेंट की।
लोगों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए ब्रांडिंग और एडवरटीजमेंट बहुत जरूरी है, ताकि लोगों को पता चले कि उनके आसपास ऐसा कोई हॉस्पिटल खुल गया है जहां पर वो अपना इलाज सही कीमत पर करवा सकते हैं। इसके लिए आप होर्डिंग्स, मीडिया, एडवर्टाइजिंग और सोशल मीडिया ऐड से ये काम करवा सकते हैं। साथ ही अपने शहर में चलने वाले रेडियो स्टेशन, टीवी चैनल्स पर भी आप स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम चलवा सकते हैं, जहां के हॉस्पिटल के एक्सपर्ट डॉक्टर्स लोगों के सवालों के जवाब दे सकते हैं। इससे भी काफी फायदा होता है। इसके साथ ही वेबसाइट और ऑफिशियल सोशल मीडिया पेज का होना जरूरी है ताकि लोग कम्यूनिकेट कर सके।
लागत और कमाई।
सीधी तौर पर बात किया जाए तो एक हॉस्पिटल खोलने के लिए लाखों से करोड़ों रुपया लगते हैं अगर आप एक हॉस्पिटल बड़े स्तर पर खोलते हैं तो आराम से उसमें एक करोड़ से अधिक रुपया लगेंगे लेकिन छोटे स्तर पर हॉस्पिटल खोलने में अब 40 से 50 लाख का इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं। इसके अलावा कमाई की बात की जाए तो यह भी आपके हॉस्पिटल के स्तर पर डिपेंड करता है। अगर आप ज्यादा सुविधा दे रहे हैं तो आप आराम से लाखों-करोड़ों कमा सकते हैं। इसमें बहुत प्रॉफिट मार्जिन होता है और इसमें हमेशा मुनाफा ही होते रहता है।
FAQ:
हॉस्पिटल खोलने के लिए अच्छा जगह कौन सा हैं?
हॉस्पिटल खोलने के लिए वैसा जगह का चयन करें जहां ट्रांसपोर्ट बिजली और पानी की सुविधा आसानी से पहुंचे।
हॉस्पिटल बिजनेस शुरू करने के लिए प्लान किससे बनवाएं?
हॉस्पिटल बिजनेस शुरू करने के लिए आप प्लान सीए से बनवा सकते हैं।
हॉस्पिटल बिजनेस शुरू करने के बाद कितना कमाई कर सकते हैं?
अगर आप ज्यादा सुविधा देते हैं तो आप आसानी से लाखों-करोड़ों कमा सकते हैं।
निष्कर्ष:
ऊपर दिए गए लेख में हम आपको कुछ पॉइंट्स बताए हैं जिसके द्वारा आप खुद का हॉस्पिटल बिजनेस शुरू कर सकते हैं और लाखों करोड़ों कमा सकते हैं। ऐसे में आने वाले समय में यह बिजनेस हमेशा ही चलने वाला है। अगर आप भी एक हॉस्पिटल खोलना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए सभी पॉइंट को ध्यान से पड़ेंगे तो आपको और भी अधिक मुनाफा होगा। आशा करता हूं कि आलेख आपको पसंद आया होगा। इसलिए को पढ़ने के लिए धन्यवाद।